Sunday 23 May 2021

नारी

 माल नहीं मान है वो सामान नहीं सम्मान है वो

दीपक के लौ के जैसे हर घर का अभिमान है वो 


क्यों नरक की यातनाएं है उसको है सहनी पड़ती

क्यों व्यर्थ व्यथित सी बातों में सारा अपना जीवन जीती

क्यों लाख असंख्य दुक्खो का करती हैं पान है वो

माल नहीं मान है सामान नही सम्मान है वो 


मां, बेटी, बहन, दादी का रोज वो श्रृंगार है करती 

बुआ, मामी, चाची में कइयों की आशाएं भर्ती

कभी बन दुर्गा, कभी बन लक्ष्मी, कभी सरस्वती बन है जाती 

इंद्र धनुष के रंगों जैसे हर घर को रोशन वो करती।

कैसे करूं निरादर उसका क्यों ये सब सहती है वो

माल नही मानव है वो भी सामान नही सम्मान है वो

करो प्रतिज्ञा सब संग मेरे सब, सब नया सबेरा लाओगे 

नई किरण के निश्चल भावो संग तुम मान उसका फिर बड़ाओगे 

Wednesday 28 April 2021

ए महामारी ! अब तो थम जाओ 😭😭

 बस बहुत रोने को जी चाहता है 

कहीं चले जाने को जी चाहता है 

कैसी विडम्बना है ये कैसा आडंबर है 

कहीं डूब कर मर जाने को जी चाहता है 

कब हम हो गए इतने लापरवाह 

की बस रह गई इन रैलियों की परवाह 

ना bed मिल रहा ना ऑक्सीजन मिल रही 

बस मिल रही तो झूठी आशाएँ मिल रही 

हो गए हम कब से कमजोर इतने 

बेबस, लाचार और खुदगर्ज इतने 

बस सुन रहे तो सिर्फ चिताओं की भभक को

क्रंदन बहुत, और टूटती चूड़ियों की खनक को

ना लकड़ियां नसीब, ना बाजे नसीब हैं।

आखिरी दर्शन भी बहुत दुर्लभ हैं।


हे प्रभु कुछ कर बस तेरा सहारा है 

इन नेताओं से बड़ा ना कोई नकारा है 

कुछ कर ऐसा फिर वही सफर लौट आए।

अच्छे दिन ना सही ये बस ये मंजर तो रुक जाए 

कब तक रुलाओगे अब तो शर्म करो 

मानव है तो तुम हो अब तो रहम करो ।


बस अब थम जाने को जी चाहता है

कहीं डूब के मर जाने को जी चाहता है।


Wednesday 8 November 2017

मैं मिला मुझसे ही !!!!!

एक रोज मुलाकात हुई हमारी एक सज्जन से,
कुछ खोये-खोये और कुुुछ अनमने से,
कुछ अपनी ही उधेड़बुन में उलझे हुए,
मानो खाली पन्नो में कुछ टटोलते हुए 

नजर तो हम से ही मिली हुई थी, ये तो था 
पर नदारद थी तो बातों में उत्सुकताा
यूँ शब्द तो उसके मुख से ही आते थे,
व्यथा भी तो ये ही थी कि बस मुख से आते थे
मुझसे ये सब अब देेेखा न गया, और पूूछ ही लिया
क्या है जो है सताता तुम्हेें
क्यों हो बुत, क्या कष्ट है तुम्हें, 
क्यों लगते हो तुम मुझे मुुुझ से ही 
वही दर्द, वही अंदाज और चेहरा भी वही 
बिन सूरज की सुबह, बिन चाँद की रात से,
घने वन में भटक चुके कोई राही तो नही?

उसने कहा बड़ी देर हो गयी तुमने 
अब तक पहचाना नहीं?
ये तुम ही हो, कोई और नही 
क्यों दुनिया की अर्थ में समय गवाते हो,
आज है समय, मिलो तुम तुमसे ही ।

Monday 16 January 2017

तुम्हारा स्वागत करने हम तैयार हैं ..... Dedicated to Niece

आओ तुम, तुम्हारा स्वागत करने हम तैयार हैं
नन्हे क़दमों की आहट सुनने को हम बेक़रार हैं
आगमन तुम्हारा तो खुशियों का पिटारा है
नन्ही कली के पदार्पण का पलपल यादगार है

वो आँगन पौधे , वो पौधों की पत्तियां 
पत्तियों पर मंडराते वो भौरों की भिन भिन 
वो पराग के कण जो उड़ते इधर उधर 
वो कलियों से बनते फूल मदीर मधुर 
ये मौका है इनके उत्सव मनाने का 
ख़ुशी के सागर में बस डूब जाने का 

आगमन से तुम्हारे सारी खुशियाँ चली आई
तुम आई तो सारी परेशानी चली गई
तुम्हारी चह चह सुनने को अब दिल बेक़रार है
एक झलक निहारने को नैना दगादार हैं

आओ तुम, तुम्हारा स्वागत करने हम तैयार हैं 
नन्हे क़दमों की आहट सुनने को हम बेक़रार हैं

Monday 19 September 2016

ये वीरों की धरती है भरी पड़ी बलिदानों से

ये वीरों की धरती है भरी पड़ी बलिदानों से
चेतती ना सरकार यहाँ , इन आतंकी मंजरो से
कैसे कोई घर में घुस कर आग लगा जाता है
कैसे कईयों के माथे का सुहाग मिटा जाता है।
कई कोखो की किलकारी क्यों अगले पल थम जाती है
क्यों वो साये की अपलक नज़रे बस नम जाती है

ये धरती भरी पड़ी है कुछ नेता और मक्कारो से
चेतती ना सरकार यहाँ इन आतंकी मंजरो से

क्या इन सब दावानल भी कोई इन्तेहा नही होती
क्या इन आतंकी की कोई माँ और बहन नही होती
बहाया खून बहुत अब अपना , उनका निचोड़ के रख देंगे
उन आँखों की अब खैर नही, नोच नोच कर रख देंगे
कब तक उस अदने से नापाक की करनी झेलेंगे
इसी तरह कब तक उरी,  उनको दोहराने देंगे

ऊँगली उठाने का काम नही सब साथ एक खड़े होंगे
इन नंगो की करतूतों का मुह तोड़ जवाब इन्हें देंगे

पर

ये धरती भरी पड़ी है कुछ नेता और मक्कारो से
चेतती ना सरकार यहाँ इन आतंकी मंजरो से
हैं सरकार चलाते ये बस चिकनी चुपड़ी बातो से
स्टेटमेंट बस दे देते और जनता को हैं फुसलाते

क्या हैं आजाद हम या बस स्वप्न में जी रहे
या लोकतंत्र की छवि लेकर बस सजा ही भुगत रहे
अभिमान हमें है सब गुलाब की पंखुडियो का
लिपटे हुए , अमन का, और शान तिरंगे का

है हिम्मत तो करो प्रतिज्ञा उरी दोबारा न होने देंगे
बारामुला की माटी पर अब बम न फटने देंगे
होगी ना जरुरत अब तिरंगे को झुकने की
सूनी गोद , साया और न पलके भिगोने की

जय हिन्द

Monday 15 February 2016

आज़ादी का मतलब समझो, प्यारे भारत के सपूत

सुनते सुनते ये भी क्या अब सुनना पड़ेगा
East or West India is the best           
भारत में खाने वालो से भारत को बचाना पड़ेगा
हम आज़ाद, गुलाम नही कब तक समझेंगे ये
विरोध प्रदर्शन का तरीका कब तक बदलेंगे ये
एक सरफिरा पागल वो हज़ारों जाने लुटवाता है
पॉलिटिक्स के चक्कर में कइयों की लुटिया डुबवाता है
खुद तो महलों में श्रृंगार करे, पैर धरा में जरा ना धरे
बातों के बड़बोलेपन से, माँ भारत का अपमान करे
आज़ादी का मतलब समझो, प्यारे भारत के सपूत
बोलने का अधिकार सही पर क्यों बन जाते हो कपूत
कश्मीर की वादियों को तुम ना अब लुहलुहान करो
शांति सत्य अहिंसा का क्यों ना तुम अब मार्ग धरो
देता तुम्हे जो है जीवन उसका ना अपमान करो
ना चीरो छाती-सीना उसका, व्यर्थ व्यय ना मान करो
कश्मीर मांगती आज़ादी का नारा भले ही अच्छा है
आज़ादी तुम से ही चाहिए यही तो उसकी इच्छा है
फूल कमल, गुलाब अब बंजर भूमि पर भी खिल उठेगा
हर बार मरेगा ये अफजल जिस घर से भी ये निकलेगा
जो देश द्रोह-गद्दार रहे है उनकी तो फांसी बनती है
अविचल रहे हिमालय अपना, इतनी तागीद तो बनती है
भारत की बर्बादी से, बर्बाद हमारा दिल होता है
ये आलम को खंडित करने को हर दिल बच्चा सा रोता है
क्रांतिवीरो के बलिदानो को अब और कलंक ना लगाओ तुम
नही सुहाती शान्ति अगर तो यारो यहाँ से जाओ तुम
कौम को दोष नही देता मैं, सत्य बात बतलाता हूँ
ये भारत, हिंदुस्तान है, यही सत्य बस दिखलाता हूँ
दंगल राजनीति करने कुछ मंद बुद्धि आ जाते है
जब औकात समझ आती तो दल बदल कर जाते है
नही चाहिए आज़ादी जो विश्वास को हिलाती हो
संविद्धान को हिलाती हो, संस्कार को हिलाती हो
नही चाहिए आज़ादी जिसमे रक्त का नारा हो
ना शांति, ना चैन-अमन, बस व्यर्थ का गाना हो
नही चाहिए आज़ादी श्वेत कपास ना हो
जीने की आस ना हो, अपनेपन का स्वाद ना हो
नही चाहिए आज़ादी जिसमे माँ को शान ना हो
एकता का अशोक चक्र, जन गण मन का गान ना हो

#JNU_controversy  #anti_Indian #Hindustan_Zindabad

Sunday 2 August 2015

मेरा शहर मेरे दोस्तों से बनता है

मेरा शहर मेरे दोस्तों से बनता है 
      हर वक्त, बस इनका होना खलता है 
   एक दुनिया बसी थी कुछ साल पहले
  उसे सोच सोच कर मन आह भरता है
हर शाम किसी के नाम होती थी
कभी गम तो कभी ख़ुशी बरसती थी
जाना आना साथ बस
खाना पीना साथ बस
हर वक्त मस्ती की ललात रहती थी
इन कमीनो को थोडा तो रुलाना बनता है
थोड़ी तो जुदाई थोडा याद दिलाना बनता है
                           क्योकि 
                           मेरा ये शहर मेरे दोस्तों से बनता है
                           हर वक्त, बस इनका होना खलता है

सोचा मिलेंगे फिर बिछड़ने के बाद
पर अब लगता है मिलेंगे बस मरने के बाद
मिलना बिछुड़ना तो एक दस्तूर है पता है
दिल में रखना ही क्या सबसे बड़ी सजा है?
हर बार सोचना और फिर
मन को मसोसना
कुछ नादानी लगता है
पर यादों से भी मिटाना हद बेमानी लगता है
                           क्योकि 
                           मेरा शहर मेरे दोस्तों से बनता है 
                           हर वक्त, बस इनका होना खलता है .....